Children special चांद की हट

Children special चांद की हट  

 दोस्तों! आज हम लिखने जा रहे हैं कविता चांद के बारे में वैसे तो छोटे बच्चे अपनी मां से खिलौने के लिए मिठाई के लिए आदि चीजों के लिए जिद करते हैं। लेकिन आज चांद अपनी मां से जिद कर रहा है रात को मुझे ठंड लगती है । ठंडी हवा में वह अपना सफर तय करता है। ठंड से बचने के लिए चांद को भी कुर्ता चाहिए।   

Children special चांद की हट  

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला”

सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।

सन- सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,

अगर न हो तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘अरे सलोने !

कुशल करें भगवान, लगे ना तुझको जादू-टोने।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा।

घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की आँखों को तू दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही तो बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ।

सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए।

रामधारी सिंह दिनकर

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अगर पेड़ भी चलते होते

अगर पेड़ भी चलते होते कितने मजे हमारे होते,

बाँध तने में उनके रस्सी चाहे जहाँ कहीं ले जाते।

जहाँ कहीं भी धूप सताती उनके नीचे हम छिप जाते।

भूख सताती अगर अचानक तोड़ मधुर फल उनके खाते ।

आती कीचड़ बाढ़ कहीं तो झट उनके ऊपर चढ़ जाते

Children special चांद की हट
Children special चांद की हट

 दिविक रमेश

बादल हैं किसके काका

अभी-अभी थी धूप, बरसने लगा कहाँ से यह पानी,

किसने फोड़ घड़े बादल के, की है इतनी शैतानी ।

सूरज ने क्यों बंद कर लिया, अपने घर का दरवाजा,

उसकी माँ ने भी क्या उसको, बुला लिया कहकर ‘आ जा’ ।

जोर-जोर से गरज रहे हैं, बादल हैं किसके काका,

किसको डाँट रहे हैं, किसने कहना नहीं सुना माँ का ?

Children special चांद की हट
Children special चांद की हट

 

 सुभद्रा कुमारी चौहान

पानी बरसा

 सनन सनन लू चलने लगती,

गरम तवे की धरती जलती।।

पानी बरसा झूमे हम,

छाता लेकर निकले हम।।

झमाझम बारिश

पानी बरसा छम छम छम,

छाता लेकर निकले हम।।

पैर फिसल गया गिरे धड़ाम,

नीचे छाता ऊपर हम।।

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