कल यानी रामनवमी के दिन अयोध्या के राम मंदिर में अद्भुत नजारा देखने को मिला, रामनवमी के मौके पर भगवान राम का सूर्य तिलक किया गया, दोपहर 12.16 बजे से अगले 5 मिनट तक सूर्य की किरणें भगवान राम के मस्तिष्क पर पड़ी। सूर्य तिलक के लिए सूर्य की किरणों को पहले अलग-अलग तीन दर्पणों के जरिए अलग-अलग एंगल में डायवर्ट किया गया। तो आइए जाने कि कल कैसे हुआ श्री रामलला का सूर्याभिषेक।
इसके बाद पीतल के पाइपों के जरिए किरणें आगे बढ़ते हुए लेंस के जरिए सीधा रामलाल के मस्तिष्क पर पहुचाईं गयी, पीतल की पाइपों में क्षर काम होता है, इसलिए इस धातु का इस्तेमाल किया गया था। रामनवमी के दिन अयोध्या की राम मंदिर में ऐसा नजारा देखकर करोड़ों लोग भाव-विभोर हो गये। राम मंदिर में राम लला के सूर्य अभिषेक का सफल परीक्षण 10 अप्रैल को किया गया था। जिसके बाद एक वीडियो भी जारी किया गया था।

वैज्ञानिकों की मौजूदगी में ठीक दोपहर 12 बजे दर्पण के जरिए सूर्य तिलक का सफल परीक्षण किया गया था। रामलला के गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद पहली नवरात्रि थी। इसलिए रामनवमी को लेकर राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामनवमी की खास तैयारियां की थीं। इसी कड़ी में रामनवमी के दिन रामलला का सूर्य तिलक अद्भुत और दिव्य तरीके से किया गया। इसका लाइव टेलिकास्ट प्रसार भारती ने किया, वहीं अयोध्या में इस घटना को देखने के लिए 100 से अधिक जगहों पर बड़ी-बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई गई जिससे कि लोग आराम से घर बैठे दर्शन कर पाए।
राम लला के माथे पर कब तक चमका ‘सूर्य तिलक’?
- अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम लला के माथे पर ‘सूर्य तिलक’ दोपहर 12 बजे हुआ, जो “लगभग 3 मिनट” तक चला। मंदिर ट्रस्ट द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस कार्यक्रम का संचालन किया।
2. उन्होंने राम लला के माथे पर प्रकाश की किरण निर्देशित करने के लिए वैज्ञानिक विशेषज्ञता का उपयोग किया।
3. यह घटना दर्पण और लेंस के संयोजन के माध्यम से मूर्ति के माथे पर सूर्य के प्रकाश को सटीक रूप से निर्देशित करके प्राप्त की गई थी।
कैसे किया गया रामलला का सूर्याभिषेक?
सूर्याभिषेक के लिए “अंतिम लेंस और दर्पण पूर्व की ओर मुख किए हुए श्री राम के माथे पर सूर्य की किरणों को केंद्रित किया गया। सूर्य की किरणों को उत्तर दिशा की ओर दूसरे दर्पण की ओर भेजकर प्रत्येक वर्ष रामनवमी के मौके पर सूर्य तिलक बनाया जायेगा। पाइपिंग और अन्य हिस्से पीतल का उपयोग करके बनाए गए हैं।”उन्होंने कहा कि दर्पण और लेंस की क्वालिटी भी काफी उच्च है, जिससे कि यह लंबे समय के लिए टिके। पाइप के अंदर की सतह को काले पाउडर से रंगा गया है, जिसे कि सूर्य का प्रकाश बिखरने नहीं पाए। सूर्य की गर्मी की तरंगों को मूर्ति के माथे पर पड़ने से रोकने के लिए एक इन्फ्रारेड फिल्टर ग्लास का उपयोग किया जाता है।”
इस टीम में सीबीआरआई, रूड़की और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईएपी), बेंगलुरु के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। इस टीम ने सौर ट्रैकिंग के स्थापित सिद्धांतों का उपयोग करके मंदिर की तीसरी मंजिल से गर्भ गृह तक सूर्य की किरणों के सटीक संरेखण को व्यवस्थित किया। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान से तकनीकी सहायता और बेंगलुरु स्थित कंपनी ऑप्टिका ने इस पूरी प्रक्रिया में मदद की है।
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