अयोध्या जिसे साकेत और राम नगरी भी कहा जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक और घार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। यह पवित्र सरयू नदी के तट पर बसा हुआ है और अयोध्या जिले का मुख्यालय है। इतिहास में इसे ‘कोशल जनपद’ भी कहा जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमें भगवान् श्री राम ने अवतार लिया। श्री राम मंदिर अयोध्या के बारे में जानकारी
कौन थे भगवान राम?
भगवान राम त्रेतायुग में धरती पर अवतरित हुए थे। उनके पिता का नाम दशरथ और माता का नाम कौशल्या था। वे चार भाई थे। उनकी पत्नी का नाम सीता था। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में पूरी अयोध्या नगरी को त्रेतायुग की थीम पर सजाया जा रहा है।
श्री राम मंदिर अयोध्या के बारे में जानकारी
हिंदुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। और उनके जन्म स्थान पर एक भव्य मंदिर स्थित था। जिसे मुगल अक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहां एक मस्जिद बना दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करना है एवीएन वाहन एक नया मंदिर बनाने के लिए वहां एक लंबा आंदोलन चला 6 दिसंबर सन 1992 में यह ढांचा गिरा दिया गया और वहां श्री राम जी का एक अस्ताई मंदिर का निर्माण कर दिया गया।
राम मंदिर बनाने का खर्चा और नक्शा-
साल 1987 में ही राम मंदिर का नक्शा वास्तु वित्त श्री चंद्रकांत सोमपुरा ने ही तैयार किया।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर के निर्माण को लेकर कहा है कि पांच फरवरी, 2020 से 31 मार्च 2023 तक 900 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और अभी भी ट्रस्ट के बैंक खातों में 3000 करोड़ रुपये जमा हैं. ट्रस्ट का कहना है कि राम मंदिर की नींव तैयार करने से लेकर पहले फ्लोर तक का काम जारी है साथ ही अभी के समय में अयोध्या में दूसरे फ्लोर का काम भी शुरू कर दिया गया है. ट्रस्ट के एक अधिकारी का कहना था कि मंदिर का निर्माण तीन चरणों में पूरा होगा और अंतिम निर्माण जनवरी 2025 तक किया जाएगा.
साल 1987 में ही राम मंदिर का नक्शा वास्तुविद चंद्रकांत सोमपुरा ने ही तैयार किया.
पुरातात्विक तथ्य-
अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
श्री राम मंदिर अयोध्या के बारे में जानकारी
इतिहास-
राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार से है-
* 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
*1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
*1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा
*1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
*सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
*सन् 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
*6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।
* उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोगगठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृतमुख्य न्यायाधीश एम. एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्षबनाया गया।
* लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
*1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
*1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
*2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
*2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
* 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।
* जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
* 31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ा गया।
*2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णयसुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
* उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 19 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया था।
*सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 फरवरी 2018 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
मंदिर में कब विराजमान होंगे श्री राम लला-
अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला की कौन-सी प्रतिमा लगाई जाएगी, इस पर फैसला हो गया है। मिली जानकारी के मुताबिक, गर्भगृह में रामलला की 51 इंच लंबी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इसमें वे बाल स्वरूप में नजर आएंगे
रामलला के नई प्रतिमा स्थापित होने के बाद पुरानी मूर्ति का क्या होगा, यह सवाल हर किसी के मन में आ रहा होगा। इसलिए आपको बता दें कि पुरानी मूर्ति को भी नई प्रतिमा के साथ स्थापित करने की योजना बनाई गई है। बताया जाता है कि नई प्रतिमा को ‘अचल’, जबकि पुरानी को ‘उत्सव’ मूर्ति के तौर पर जाना जाएगा।
राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होगा। इस दौरान गर्भगृह में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कराई जाएगी। इसे लेकर लोगों में अत्यधिक उत्साह है। अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की रूपरेखा तय हो गई है. 22 जनवरी, 2024 को मुख्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा लेकिन उससे पहले ही कई तरीके के पूजा-पाठ और अनुष्ठान शुरू हो जाएंगे. 15 जनवरी को रामलला के विग्रह (रामलला के बालरूप की मूर्ति) को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। 16 जनवरी से विग्रह के अधिवास का अनुष्ठान भी शुरू हो जाएगा, जो कि प्राण प्रतिष्ठा का पहला कार्यक्रम है. फिर 17 जनवरी को रामलला के विग्रह को नगर भ्रमण के लिए निकाला जाएगा. इसके बाद 18 जनवरी से प्राण प्रतिष्ठा की विधि प्रारंभ होगी और 19 जनवरी को यज्ञ अग्नि की स्थापना की जाएगी.20 जनवरी को गर्भगृह को 81 कलश सरयू जल से धोने के बाद वास्तु की पूजा होगी. 21 जनवरी को रामलला को तीर्थों के 125 कलशों के जल से स्नान कराया जाएगा. आखिर में 22 जनवरी को मध्यान्ह मृगशिरा नक्षत्र में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस मौके पर पीएम मोदी मुख्य यजमान होंगे. देश-विदेश से बड़ी संख्या में वीवीआईपी मेहमान भी उपस्थित होगें।