करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व

करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व 

What is करवा चौथ, करवाचौथ क्या है? 

करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसे मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य भारत में मनाया जाता है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व सौभाग्यवती ( सुहागिन ) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। पति के सौभाग्य एवं लंबी उम्र हेतु हिंदू समुदाय की महिलाओं द्वारा प्रति वर्ष एक दिन करवा चौथ का मनाया जाता है।

इस व्रत के दौरान महिलाओं को भूखे पेट अर्थात बिना जलपान ग्रहण किए बिना इस व्रत को रखना पड़ता है। अतः करवा चौथ पति पत्नी के लिए साल का सबसे विशेष दिन होता है जिससे उनके एक दूसरे के प्रति लगाव एवं प्यार और अधिक बढ़ जाता है।

आजकल न सिर्फ पर सुहागन महिलाएं बल्कि कुंवारी कन्याएँ भी भविष्य में सुंदर, निरोगी सौभाग्य पति की कामना करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। समय की बात करें तब यह व्रत सुबह सूर्योदय से लेकर रात को चांद निकलने तक रखा जाता है और रात को चांद के दीदार के साथ ही महिलाओं द्वारा चंद्रमा को अर्ध्य अर्पित कर पति के हाथों द्वारा जल ग्रहण कर इस व्रत को तोड़ा जाता है।        

करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व

करवा चौथ त्यौहार कैसे मनाया जाता है ?

सभी सुहागन महिलाओं के लिए यह विशेष दिन होता है , इसलिए इस मौके पर वे अपने पति के लिए खूब सज – धज कर हाथों में मेहंदी रचा कर हाथों में चूड़ी पहन कर , खूब सोलह श्रृंगार करती हैं, और इस प्रकार सुहागन स्त्री पति की पूजा कर व्रत का परायण करती है तथा इस दिन उपवास रखने वाली महिलाएं प्रातः काल उठकर स्नान करती है।

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चूंकि यह दिन महिलाओं के सजने सवरने का भी होता है, तो इस दिन वे अपने पसंदीदा परिधान पहनती है भारतीय परंपरा के मुताबिक अधिकतर महिलाएं इस पर्व पर साड़ी पहनना अधिक पसंद करती है , तथा पसंदीदा साड़ी के साथ मैचिंग चूड़ी एवं गहने इत्यादि पहनकर सुंदर दिखती है। इस दिन महिलाएं व्रत शुरू करने से पूर्व सरगी का सेवन करती हैं , सरगी में सेव अनार , केला , पपीता जैसे फल होते जिनका सेवन शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होता हैं।

यदि हम सरल शब्दों में सरगी को समझे तो उपवास के संकल्प से पूर्व किए जाने वाला नाश्ता सरगी कहलाता है। अतः सूर्योदय से पूर्व सरगी व्यंजन को ग्रहण कर लेने के बाद पूरे दिन इस व्रत को रखने वाली महिलाओं के लिए पानी पीने की भी मनाही होती है। तथा रात को आकाश में चंद्रमा के दिखाई देने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपने पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथ से जलपान ग्रहण कर इस व्रत की समाप्ति की जाती है।करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व

करवा चौथ का महत्व-

भारतीय संस्कृति में पति – पत्नी के बीच के प्यार के इस विशेष पर्व को सभी सुहागन महिलाओं द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाता है , यह त्यौहार दिल्ली पंजाब हरियाणा समेत भारत के अनेक राज्यों में मनाया जाता है। पति की दीर्घायु तथा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु इस पर्व को मनाने की परंपरा काफी पुरानी है और सबसे विशेष बात है कि इस त्यौहार को बिना भेदभाव के सभी आयु जाति वर्ण के बिना सभी स्त्रियों को व्रत रखने का अधिकार है।

यह व्रत सुहागन महिलाओं द्वारा 12 वर्ष से 16 वर्ष तक लगातार रखा जाता है हालांकि यह उनकी इच्छा है वे इस व्रत को लंबे समय तक रख सकती हैं , अन्यथा 12 या 16 वर्ष के बाद उद्यापन कर इस व्रत की समाप्ति कर सकती हैं। अतः संक्षेप में कहें तो एक सुहागन महिला के लिए सबसे सौभाग्य दायक दिन करवा चौथ को माना जाता है , इसलिए प्रतिवर्ष करवा चौथ के इस विशेष पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से महिलाओं द्वारा शुरू कर दी जाती है।

कब और कैसे हुई करवा चौथ व्रत की शुरुआत , क्यों होती है चंद्रमा की पूजा?

अधिकांश कथाओं में यह पाया जाता है कि यह व्रत ब्रह्माजी के कहने पर शुरू किया गया था । देवताओं के राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने यह व्रत रखा था । कहा जाता है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था । देवताओं ने सोचा कि वह राक्षसों से पराजित हो जाएंगे । ऐसे में देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे राक्षसों पर विजय पाने का उपाय पूछा । तब ब्रह्माजी ने देवताओं को उपाय समझाते हुए बताया कि करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को है । ऐसे में यदि सभी देवताओं की पत्नियां करवा चौथ का व्रत रखें तो उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगा । ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवताओं की पत्नियों ने उपवास किया । परिणामस्वरूप , देवताओं ने राक्षसों पर विजय प्राप्त की ।

करवाचौथ में चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है?

करवा चौथ पर महिलाएं चंद्रमा की पूजा करती हैं । जल से उन्हें अर्घ्य देती हैं । इस दिन महिलाएं छलनी से चांद और पति को देखती हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं चंद्रमा की पूजा का क्या महत्त्व है ?

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्रमा की पूजा करने से दांपत्य जीवन में प्रेम हमेशा बना रहता है । चंद्रमा के समान ही रिश्तों में भी शीतलता बनी रहती है ।करवा चौथ पर महिलाएं विधि – विधान से माता पार्वती और चंद्रमा की पूजा करती हैं ।

इस पूजा में उपहार भी देती हैं । लेकिन सवाल यह उठता है कि महिलाएं श्रृंगार की चीजें क्यों गिफ्ट करती हैं । इस प्रश्न के उत्तर में ज्ञानी आचार्यों द्वारा बताया गया है कि विवाहित स्त्रियों को श्रृंगार का सामान उपहार में देने से उन्हें सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है । व्रत करने वाली स्त्री , उसके पति और बच्चों पर आने वाली विपत्ति दूर हो जाती है ।

करवा चौथ की कहानी

 अब चलिए करवा चौथ की कहानी के ऊपर गौर करते हैं। बहुत समय पहले की बात है वीरावती नामक एक राजकुमारी थी जिसके 7 भाई थे , सभी भाई अपनी इस इकलौती बहन का ख्याल रखते थे। वीरावती की उम्र बढ़ने के साथ ही एक राजघराने में राजकुमार से शादी कर दी जाती है।शादी के बाद वीरावती अपने पति की लम्बी उम्र हेतु करवा चौथ का व्रत रखने हेतु अपने मायके जाती है।

कमजोर स्वास्थ्य के साथ वीरावती करवा चौथ के इस व्रत को रखती है। और कमजोरी की वजह से रात को चाँद दिखने से पहले ही वीरावती भूख – प्यास से व्याकुल होने लगी। वीरावती की यह पीड़ा उनके भाई को सहन न हूई। और वीरावती के छोटे भाई ने इस व्रत को तोडना ही उचित समझा।

परन्तु बिना चाँद को अर्ध्य अर्पित किए बगैर वह भोजन नहीं कर सकती थी, इस लिए छोटे भाई ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें प्रकाश को दिखाकर बताया कि बहन चाँद आ चुका है। अब चाँद को अर्ध्य देकर भोजन कर लो।करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व

इस प्रकार इस धोखे को सच मानकर वीरावतीं सच मान लेती है , और अग्नि को अर्ध्य देकर भोजन कर लेती है, लेकिन भोजन का निवाला मुँह में रखने से पूर्व ही अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में बाल निकला , जबकि दूसरे में उसे छींक आई , और तीसरे कौर में उसे खबर पहुँची की उसका पति मर चुका है। पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती को अत्यंत दुख हुआ। करवाचौथ क्या है? करवाचौथ व्रत का महत्व

और अपने इस कृत्य के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी उसका यह विलाप सुनकर देवी इंद्राणी इंद्र देव की पत्नी वहां पहुंची तथा वीरावती को सांत्वना देने लगी। वीरावती ने जब देवी इंद्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उनके पति की मृत्यु क्यों हुई ? तो इसके जवाब में देवी इंद्राणी ने कहा तुमने बिना चंद्रमा को अर्ध्य दिए बगैर ही अपने करवा चौथ के व्रत को तोड़ा है इस वजह से आपके पति की असामयिक मृत्यु हुई।

तथा देवी इंद्राणी ने वीरावती से कहा कि तुम करवा चौथ के व्रत के साथ – साथ प्रत्येक माह की चौथ को भी व्रत रखना शुरू करो। ऐसा श्रद्धा पूर्वक करने से आपका पति पुनः जीवित हो जाएगा।  देवी इंद्राणी द्वारा कहे गए कथनों के अनुसार वीरावती ने करवा चौथ के व्रत के साथ – साथ पूरे भक्तिभाव से प्रत्येक माह की चौथ को व्रत लिया , जिससे पुण्य के रूप में वीरावती को अपना पति पुनः जीवित मिल पाया।

             जय हो करवाचौथ माता 

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